Maithili Sangeet Yatra
मैथिली संगीत यात्रा !!
सीता के कुम्भ से निकलते ही मिथिला बैकुण्ठ बन गया लोग मस्त होकर गाने बजाने लगे। स्वर्ग से गायक और वादक वाद्ययंत्र के साथ अवतरित हुए। तभी से असंख्य गीत अनेक अवसर पर गाने की परंपरा है। गायकी में भी लोक गायकी प्रसिद्ध है।
सीता के कुम्भ से निकलते ही मिथिला बैकुण्ठ बन गया लोग मस्त होकर गाने बजाने लगे। स्वर्ग से गायक और वादक वाद्ययंत्र के साथ अवतरित हुए। तभी से असंख्य गीत अनेक अवसर पर गाने की परंपरा है। गायकी में भी लोक गायकी प्रसिद्ध है।
संगीत के साथ वाचन परंपरा प्रबल है। वाचक अपनी कला में सम्पूर्ण कलाकार - वाद्ययंत्रसंचालक, नाटक के स्त्री और पुरुष पात्र का अभिनय करते हुए नवरस का प्रदर्शन करता है। यहाँ लोक, गीत नाट्य की परंपरा है। दुर्भाग्य से पलायन के कारण संगीत के अनेक विरासत का यहाँ क्षय हो रहा है। संगीत के कुछ तत्व अब कुछ ही लोगों में बचे हैं। अगर इस कला को कार्यशाला, के द्वारा युवाओं को सिखाया नही गया, इनका वैज्ञानिक दस्तावेजीकरण नही किया गया तो कला का समूल नाश हो जायेगा।
संगीत को अगर बुजुर्ग कलाकारों के देख-रेख में कार्यशाला में तैयार किया जाता है, उसका मंचन लोगों के लिए विशेषकर युवाओं के लिए किया जाता है तो कलाकार को लगेगा कि कला का अंत नही बल्कि उनकी पीढ़ी से नयी पीढ़ी में हस्तांतरण हुआ है। युवा इससे ना केवल अपनी संस्कृति को समझेंगे बल्कि उसको सहेजने में आवश्यक भूमिका भी निभाएंगे। इस तरह से कला, कलाकार और परिवेश तीनो की रक्षा संभव है।
सुनील पवन !!
( संगीत निर्देशक / गायक / लेखक )
Cont - 9899837020 /9910548505 !!
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